आज काफी दिनों बाद कुछ लिखने का मन हो रहा है। सोच रहा हु कहा से शुरू करू , वही से शुरू करता हु जहा से मेरी शुरुआत हुई है। अपनी माँ से...
माँ के बारे में कुछ भी लिखना उसकी ममता को शब्दों में समेटना नामुमकिन है फ़िर भी लिखे बिना रहा भी नहीजाता। एक बार आज से कोई चार साल पहले पुराने अखबारों की कतरने समेटते समय एक छोटा सा लेख हाथ में आ गया था । उसे मैंने आज भी संभल कर रखा हुआ है आप भी पढिये॥
माँ के बारे में कुछ भी लिखना उसकी ममता को शब्दों में समेटना नामुमकिन है फ़िर भी लिखे बिना रहा भी नहीजाता। एक बार आज से कोई चार साल पहले पुराने अखबारों की कतरने समेटते समय एक छोटा सा लेख हाथ में आ गया था । उसे मैंने आज भी संभल कर रखा हुआ है आप भी पढिये॥
। । माँ । ।
ईश्वर कुछ गढ़ रहे थे, एक अप्सरा वहा से गुजरी और उसने पूछा
'ये आप क्या बना रहे है ? मई आप को लगातार छह दिनों से काम करते देख रही हु'
ईश्वर ने जवाब दिया , "मै माँ को बना रहा हु।"
अप्सरा की उत्सुकता थी 'कैसी बनानी है?'
ईश्वर ने उत्तर दिया- " जिसकी कोख से मानवता जन्मे...
जिसकी गोद में सृष्टि समां जाए ...
जिसका स्पर्श बड़ी से बड़ी चोट को सहलाकर ठीक कर दे ...
जिसका दुलार, बड़े से बड़े सदमे से उबार दे ...
जिसके दो हाथ सबको दिखे, पर हो कई,
ताकि जीवन सवारने का उसका कर्तव्य बिना बाधा के
पुरा हो सके...
जिसके मन में भी आँखे हो जिनसे वह दूर बैठी अपनी संतानों को देख सके...
जो बीमार होने पर भी दस लोगो वाले परिवार के लिए हसकर भोजन बना दे...
नाजुक हो,
पर हर मुश्किल को हराने का दम रखे....
जिसके आँचल तले सृष्टि को सुरक्षा मिले....
जिसके नेत्रों में भाव भरा जल हो और उनके शत्रुओ के लिए ज्वाला...
जिसके दर्शन मात्र से मानवता कृत कृत हो...
मै उसे गढ़ रहा हू जिसे मानव ठेस तो बहुत पहुचाएगा पर उसका हाथ न तो आर्शीवाद देने से रुकेगा और न दिल दुआ मांगने से।"
लेखक: अज्ञात.
'ये आप क्या बना रहे है ? मई आप को लगातार छह दिनों से काम करते देख रही हु'
ईश्वर ने जवाब दिया , "मै माँ को बना रहा हु।"
अप्सरा की उत्सुकता थी 'कैसी बनानी है?'
ईश्वर ने उत्तर दिया- " जिसकी कोख से मानवता जन्मे...
जिसकी गोद में सृष्टि समां जाए ...
जिसका स्पर्श बड़ी से बड़ी चोट को सहलाकर ठीक कर दे ...
जिसका दुलार, बड़े से बड़े सदमे से उबार दे ...
जिसके दो हाथ सबको दिखे, पर हो कई,
ताकि जीवन सवारने का उसका कर्तव्य बिना बाधा के
पुरा हो सके...
जिसके मन में भी आँखे हो जिनसे वह दूर बैठी अपनी संतानों को देख सके...
जो बीमार होने पर भी दस लोगो वाले परिवार के लिए हसकर भोजन बना दे...
नाजुक हो,
पर हर मुश्किल को हराने का दम रखे....
जिसके आँचल तले सृष्टि को सुरक्षा मिले....
जिसके नेत्रों में भाव भरा जल हो और उनके शत्रुओ के लिए ज्वाला...
जिसके दर्शन मात्र से मानवता कृत कृत हो...
मै उसे गढ़ रहा हू जिसे मानव ठेस तो बहुत पहुचाएगा पर उसका हाथ न तो आर्शीवाद देने से रुकेगा और न दिल दुआ मांगने से।"
लेखक: अज्ञात.